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‘‘कलांति ददाति कला’’ अर्थात् सौन्दर्याभिव्यक्ति के माध .... Read More
‘‘कलांति ददाति कला’’ अर्थात् सौन्दर्याभिव्यक्ति के माध्यम से कला रसिकों को आनन्दित करने वाला सृजन ‘कला’ कहलाता है। सौन्दर्यप्रेमी स्वभाव के फलस्वरूप मानव ने अपने चहुँओर की भित्तियाँ, गुफायें आदि चित्रांकित कर उन्हें सजाया। जैसे-जैसे मानवीय परिस्थितियाँ परिवर्तित होती गयी, उसकी सौन्दर्य चेतना ने उसे अपने चारों ओर के वातावरण को और अधिक सुन्दर बनाने की प्रेरणा प्रदान की। चित्रकार के अन्तरतम् में सामान्य-सी घटना तथा विषयवस्तु को असाधारण रूप से प्रस्तुत करने की विशेषता होती है। वह अपनी मनोवृत्ति के अनुरूप बाह्य-संसार से ग्रहण की गयी विभिन्न स्थितियों या दृश्यों को अपनी असाधारण दृष्टि एवं सूक्ष्म प्रदर्शन के माध्यम से अकल्पनाीय सौन्दर्य प्रदान कर देता है।
Sr | Chapter Name | No Of Page |
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1 | अध्याय 0. समसामयिक कला की पृष्ठभूमि | 3 |
2 | अध्याय 1. आधुनिक चित्रकला का प्रारम्भ (1800 ई. से) | 24 |
3 | अध्याय 2(A). राजा रवि वर्मा | 21 |
4 | अध्याय 2(B). बंगाल शैली | 8 |
5 | अध्याय 2(C). अवीन्द्रनाथ टैगोर | 11 |
6 | अध्याय 3. नन्दलाल बोस (1882 ई.-1966 ई.) | 20 |
7 | अध्याय 4. शैलेन्द्रनाथ डे | 16 |
8 | अध्याय 5. देवी प्रसाद राय चौधरी | 27 |
9 | अध्याय 6. बंगाल शैली एवं प्रयोगधर्मी प्रवृत्ति | 22 |
10 | अध्याय 7. कला सम्बन्धी नवीन मोड़ एवं आधुनिकता | 25 |
11 | अध्याय 8. शारदा चरण उकील | 25 |