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आधुनिक समय में व्यक्ति या परिवार अपनी आवश्यकताओें के सावधानीपूर्वक निर्धारण हेतु दबाव डालता है। जिसके लिए गृह-व्यवस्था का ज्ञान अति-आवश्यक हो जाता है। गृह-व्यवस्था का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। बल्कि प्रबन्ध से ही सम्बन्धित होकर गृह-व्यवस्था का परिचय प्रकट होता है। गृह-व्यवस्था के अन्तर्गत् छात्र-छात्राओं को पारिवारिक जीवन में व्यवस्था बनाने हेतु ज्ञान प्रदान किया जाता है क्योंकि व्यक्ति यदि अपनी वैक्तिक जीवन में सफल होगा तो वह अन्य क्षेत्रों में भी सफल हो सकता है। इस प्रकार प्रसार शिक्षा भी छात्र व छात्राओं के लिए आवश्यक हो जाती है। क्योंकि विश्व के सभी विद्वानों का मानना है कि छात्रों का पूर्ण विकास होना आवश्यक होता है। जिसके लिए उन्हें जागृत करना आवश्यक है। आज के छात्र व छात्रा कल का भविष्य हैं साथ ही यदि देश में किसी भी योजना को कुशलता से चलाना है तो छात्रों का सहयोग अत्यन्त ही उत्साहित व उपयोगी सिद्ध होता है। इसीलिए प्रसार-शिक्षा के अन्तर्गत छात्र व छात्राओं को संचार व्यवस्था तथा अन्य प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाती है। जिससे वे स्वयं भी विकसित हो। साथ ही अपने आस- पास के लोगोें के विकास में सहायक हो।
Sr | Chapter Name | No Of Page |
---|---|---|
1 | PART-A, अध्याय-1, आवास | 14 |
2 | अध्याय-2, आवास योजना, | 32 |
3 | अध्याय-3, आंतरिक सज्जा | 24 |
4 | अध्याय-4, फर्नीचर व्यवस्था, | 30 |
5 | अध्याय-5, गृह सज्जा में पर्दे तथा कारपेट व्यवस्था | 8 |
6 | PART-B, अध्याय-1, प्रसार शिक्षा | 19 |
7 | अध्याय-2, प्रसार कार्येकर्ता की भूमिका एवं गुण | 12 |
8 | अध्याय-3, संचार या सम्प्रेषण | 13 |
9 | अध्याय-4, दृश्य - श्रव्य सामग्री. | 13 |