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Prayojanmoolak Hindi: Karyalayee Prayog
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Prayojanmoolak Hindi: Karyalayee Prayog

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Author(s): ( Edited by Bholanath Tiwari )

Publisher: ( Vani Prakashan )

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  • Books Details

    Prayojanmoolak Hindi: Karyalayee Prayog

    एक समय था जब हिन्दी केवल साहित्य रचना तथा आपसी पत्र-व्यवहार के माध्यम के रूप में प्रयुक्त होती थी, किन्तु अब धीरे-धीरे प्रकाशन, बैंक, रेलवे, 'वाणिज्य, विज्ञान, वैदेशिक संबंध आदि-इत्यादि अर्थात् सभी संबंधित क्षेत्रों में इसका प्रयोग होने लगा है। इस प्रसंग में यह बात भी उल्लेखनीय है कि सिद्धान्त के रूप में प्रायः यह कहा जाता है कि मानक भाषा का एक रूप होता है, वह समरूपी होती है, किन्तु व्यावहारिक नाता यह है कि किसी भी मानक भाषा का प्रयोग जिन- जिन विषयों के लिए किया जाता है, उन-उन विषयों के अनुरूप वह मानक भाषा अलग-अलग रूप धारण कर लेती है । इसीलिए आज यदि साहित्यिक हिन्दी का एक रूप है तो विज्ञान में प्रयुक्त हिन्दी का दूसरा है। ऐसे ही प्रशासन की हिन्दी अलग है तो खेल-कूद की हिन्दी अलग है और बाजार की मंडियों की हिन्दी अलग है ।

    ( Edited by Bholanath Tiwari )

    Category: General
    ISBN: xxx-xx-xxxx-xx-x
    Sr Chapter Name No Of Page
    1 प्रारूपण: परिभाषा, आवश्यकता, महत्त्व एवं विशेषताएँ 5
    2 प्रारूपण : रूपरेखा, पद्धतियाँ, शैली एवं विधि 18
    3 प्रशासकीयय पत्र 16
    4 कार्यालयी पत्र : प्रकार एवं प्रारूपण 50
    5 अन्य पत्र - प्रारूप 50
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